सोना पत्ती" क्या है , दशहरे पर क्यों है शमी की पत्ती को सोना मानकर लेनदेन का चलन ।

सोना पत्ती" क्या है, दशहरे पर क्यों है शमी की पत्ती को सोना मानकर लेनदेन का चलन ...



आइए,हम जानते है हिन्दू धर्म मे दशहरे पर शमी के वृक्ष की पूजन परंपरा और उसके पत्तों को सोना मानकर दूसरों को देने का चलन क्यों है ।


हिंदू धर्म में हर त्योहार का एक विशेष महत्व होता है। एक खास संदेश देने के साथ सभी त्योहार व्यक्ति को समृद्ध बनने के गुर भी सिखाते हैं। अश्विन मास के शारदीय नवरात्र में मां भगवती की 9 दिनों तक पूजा करने के बाद कल यानी 8 अक्टूबर को विजयदशमी का पर्व मनाया जाएगा। दशहरा के दिन शमी के पत्तों की पूजा करने के अलावा उसके पत्तों को सोना मानकर दूसरों को देने का चलन भी काफी पुराना और प्रचलित है। आइए जानते हैं आखिर क्या है इसके पीछे की वजह और कैसे इसका संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एवं पांडवों से जुड़ा हुआ है । 


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने की थी शमी वृक्ष की पूजा :-
मान्यता के अनुसार मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने लंका पर आक्रमण किया था और इससे पहले शमी के पेड़ के सामने शीष झुकाकर विजय की प्रार्थना की थी, भगवान ने इन पत्तियों का स्पर्श करके जीत हासिल की थी, इसलिए शमी की पत्तियों का आज भी महत्व है।


पांडवों से संबंध:-
क्षत्रियों के बीच शमी पूजन खासा महत्व रखता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत के युद्ध के दौरान कुंती पुत्र पांडवों ने इसी वृक्ष पर अपने शस्त्र छिपाए थे। बाद में इन्हीं शस्त्रों की मदद से उन्होंने कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। 


शनि के प्रकोप से मिलती है मुक्ति:-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर में शमी का वृक्ष लगाने से ईश्वर की कृपा व्यक्ति पर बनी रहती है। इसके अलावा शनि देव के भी प्रकोप से व्यक्ति बचा रहता है। कहा जाता है कि कवि कलिदास को शमी के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने से ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।  


कृषि विपदाओं का पहले से ही दे देता है संकेत:-
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बाराहमिहिर में इस बात का उल्लेख किया गया है कि जिस साल शमी वृक्ष सबसे ज्यादा फलता-फूलता है उस साल सूखे की स्थिति बने रहने के आसार होते हैं।


दशहरा पर इस मुहूर्त में करें शमी की पूजा:-
विजयदशमी के दिन प्रदोषकाल के दौरान शमी वृक्ष का पूजन करने से कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है। पूजन के दौरान शमी के कुछ पत्ते तोड़कर उन्हें अपने पूजा घर में रखें। इसके बाद एक लाल कपड़े में अक्षत, एक सुपारी और शमी की कुछ पत्तियों को डालकर उसकी एक पोटली बना लें। इस पोटली को घर के किसी बड़े व्यक्ति से ग्रहण करके भगवान राम की परिक्रमा करने से लाभ मिलता है। 


शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढ़ता का प्रतीक भी माना गया है, जिसमें अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है। इसी कारण यज्ञ में अग्नि प्रकट करने हेतु शमी की लकड़ी के उपकरण बनाए जाते हैं।


शमी पूजन से होते हैं ये लाभ:-
ऐसा माना जाता है कि दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है और इसी तरह मान्यता है कि शमी का वृक्ष घर में लगाने से देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।


शमी के वृक्ष की पूजा करने से घर में शनि का प्रकोप कम होता है, शमी के वृक्ष होने से सभी तंत्र-मंत्र और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।


इस दिन इसकी पूजा करने से सुख-समृद्धि और जीत का आशीर्वाद मिलता है, बाद में इसका महत्व और कीमती माना जाने लगा और इसे सोने के समान बताया गया और दशहरे पर शुभकामनाओं के साथ एक दूसरे में बांटने की परंपरा शुरू हो गई, इस दौरान यह माना जाता है कि सोने जैसी इसकी पत्तियां है, जो आपके जीवन में सैभाग्य और समृद्धि और जीत का आशीष दें।


शमी वृक्ष पर आधारित पौराणिक कथा:-
विजयादशमी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा भी है। महर्षि वर्तन्तु का शिष्य कौत्स थे, महर्षि ने अपने शिष्य कौत्स से शिक्षा पूरी होने के बाद गुरू दक्षिणा के रूप में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्रा की मांग की थी।


महर्षि को गुरू दक्षिणा देने के लिए कौत्स महाराज रघु के पास गए, महाराज रघु ने कुछ दिन पहले ही एक महायज्ञ करवाया था, जिसके कारण खजाना खाली हो चुका था, कौत्स ने राजा से स्वर्ण मुद्रा की मांग की तब उन्होंने तीन दिन का समय मांगा।


राजा धन जुटाने के लिए उपाय खोजने लग गया, उसने स्वर्गलोक पर आक्रमण करने का विचार किया, राजा ने सोचा स्वर्गलोक पर आक्रमण करने से उसका शाही खजाना फिर से भर जाएगा।


राजा के इस विचार से देवराज इंद्र घबरा गए और कोषाध्याक्ष कुबेर से रघु के राज्य में स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करने का आदेश दिया, इंद्र के आदेश पर रघु के राज्य में कुबेर ने शमी वृक्ष के माध्यम से स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करा दी।


ऐसा माना जाता है कि जिस तिथि को स्वर्ण की वर्षा हुई थी उस दिन विजयादशमी थी। राजा ने शमी वृक्ष से प्राप्त स्वर्ण मुद्राएं कौत्स को दे दीं, अतः इस घटना के बाद विजयादशमी के दिन शमी के वृक्ष के पूजा होने लगी।